Tuesday, 16 February 2021

बैडमिंटन , नियम , स्टेप्स तथा इतिहास

Introduction(परिचय ) 

                                                 यह सबसे पहले इंग्लैंड में 1873 में खेला गया था।  बैडमिंटन का खेल खेलना बहुत आसान है | इसमें खिलाड़ी को रैकिट के सहायता से शटल को इस प्रकार से हिट करना होता है कि वह नेट को पार करके विपक्षी खिलाड़ी के पाले में पहुंच जाय | शटल  इस प्रकार से निर्मित की जाती है कि वह थोड़ी सी ताकत के साथ हिट करने पर हवा में उछल जाता है | 

आज बैडमिंटन का खेल दोनों लिंग तथा आयु वर्ग के व्यक्तियों द्वारा खेला जाता है | यह खेल एकल तथा युगल दोनों रूपों में खेली जा सकती  है | अकल खेल में दोनों टीमों में एक -एक खिलाड़ी होते हैं जबकि युगल खेल में दोनों टीमों में दो-दो खिलाड़ी होते हैं | खेल को जीतने के लिए खिलाड़ी को अपने विपक्षी खिलाड़ी को हराना आवश्यक होता हैं और इसके लिए उसे अपने विपक्षी खिलाड़ी की अपेक्षा अधिक अंको को बटोरना आवश्यक होता है | 

                                          

एक कुशल बैडमिंटन खिलाड़ी बनने के लिए व्यक्ति को केवल शारीरिक रूप से स्वस्थ होना ही अनिवार्य नहीं होता बल्कि उसे मानसिक रूप से भी बहुत प्रबल होना चाहिए | वह खिलाड़ी  जो शटल को पहले हिट करता है वह "सर्वर"  कहलाता है जबकि जो खिलाड़ी शटल को बाद में हिट करता है वह "रिसीवर" कहलाता है | दोनों खिलाड़ी को सर्वर तथा रिसीवर बनने का अवसर प्रदान किया जाता है |  

  
                                             

                                       बैडमिंटन के आधारभूत स्ट्रोक 

            1 .         सीधे हाथ के स्ट्रोक 

            2.        सिर के ऊपर के स्ट्रोक 
  
            3.       उलटे हाथ के स्ट्रोक 


1.  सीधे हाथ के स्ट्रोक :-

                                       सीधे हाथ के स्ट्रोक में   शटल को शरीर के दाईं और से से मारा जाता है | इस स्ट्रोक को मरने हेतु खिलाड़ी को थोड़ा दाईं ओर घुमाना पड़ता है तथा पैर शरीर तथा बाजु स्ट्रोक मारने की स्थिति में लाने पड़ते हैं | खिलाड़ी का चेहरा कोर्ट की साइड रेखा की ओर होना चाहिए तथा शरीर का जाल से (90  अंश का कोण ) बनना चाहिए |


                            

सीधे हाथ के स्ट्रोक 

2. सिर के ऊपर का स्ट्रोक :-

                                                   इस स्ट्रोक में शटल को सिर के ऊपर से हाथ तथा रैकिट को जरा ऊपर ले जाकर मारा जाता है | इस स्ट्रोक को मरते समय खिलाड़ी को अपना बायां  पैर अपनी दाएं पैर से 14 - 16 इंच आगे , शरीर शटल के नीचे तथा शरीर का भर पिछले पैर पर रहना चाहिए | शरीर का भार पिछले पैर से अगले पैर पर लाने के साथ रैकिट के चपटे भाग से शटल को हिट करना चाहिए | बैडमिंटन खेल में यह सर्वाधिक प्रभावशाली स्ट्रोक है | यह टौस स्मैश तथा ड्राप शॉट में प्रयोग किया जाता है | 


सिर के ऊपर का स्ट्रोक 



3. उलटे हाथ के स्ट्रोक  :-

                             यह स्ट्रोक खिलाड़ी उस समय खेलता है जब शटल खिलाड़ी के शरीर के बाएं ओर  आ रही हो उसे वापस करने हेतु इस स्ट्रोक का प्रयोग किया जाता है जिससे शरीर सुगमतापूर्वक घूम सके | हाथ तथा कंधे भी रैकिट के बैक स्विंग के साथ पीछे चले जाने चाहिए | इस स्ट्रोक में यह आवश्यक है कि शटल से दूर रहा जाय तथा ठीक समय पर आगे स्विंग के साथ रैकिट तथा बाजू को पूरा आगे फैला कर शटल को खेला जा सके | इस स्ट्रोक में यह ध्यान रखने की बात है कि शटल मारते समय अँगूठे को हैंडल की साइड में तथा प्रथम उंगली को नीचे कर लिया जाय | ऐसा करने से रैकिट को सही धक्का मिलता है | 

                                                                                                         


               दूसरे स्ट्रोक :-

नैट स्ट्रोक :- 

                  जो शटल जाल के करीब गिरती है उसको खेलने तथा जाल पर कर 
विपक्षी कोर्ट में भेजने हेतु नैट स्ट्रोक का प्रयोग करना पड़ता है | इस शटल में शटल को इस प्रकार लौटाया जाता है कि वह विपक्षी कोर्ट में बिल्कुल नैट के पास ही गिरे परन्तु जाल अवश्य पार करना चाहिए | 
              


                                    मूलभूत शॉट :- 

लैब शॉट :-

               (क) मूलतः यह एक रक्षात्मक शॉट है जो शटल को विपक्ष की  उसके कोर्ट में ऊँचा तथा पीछा भेजता है | यह कोर्ट के किसी भी स्थान से सर के ऊपर से या नीचे से खेला जा सकता हैं | 
          (ख) क्लियर शॉट दो प्रकार के होते हैं |                                                              1. प्रतिरक्षात्मक क्लियर
                  2. आक्रामक क्लियर 
 


ड्राइव शॉर्ट :- 

                   यह एक सीधा या चपटा स्ट्रोक है जो नैट पार करने हेतु भूमि के सामानांतर मारा जाता है | यह आक्रमण का एक शक्तिशाली शास्त्र माना जाता है तथा शटल को तीव्र गति से मारने में सफल रहता है | ड्राइव, फोर हैंड तथा बैक हैंड दोनों प्रकार से खेला जा सकता है। ड्राइव में घुटने एवं कंधे के बीच के स्तर पर शटल से संपर्क होना चाहिए अर्थात इसमें शटल घुटने एवं कंधे की ऊंचाई के मध्य मारी जाती है तथा शटल , मारते समय , फैले हुए हाथ की दूरी पर होनी चाहिए।  यह स्ट्रोक अधिकतर साइड रेखा पर खेला जाता है किन्तु क्रॉस कोर्ट भी खेल सकते हैं। अधिकतर यह स्ट्रोक युगल खेल में आक्रामक स्ट्रोक के रूप में प्रयोग किया जाता है। 



स्मैश करना :-

                    इस स्ट्रोक में शटल को नीचे की ओर इतनी तीव्र गति से मारा जाता है की रैली समाप्त हो जाय तथा अंक अर्जित कर लिए जायं। स्मैश करने हेतुखिलाड़ी को पीछे जाकर शटल के नीचे स्थान लेना चाहिए। रैकिट को कलाई मोड़करपीछे स्विंग करना चाहिए तथा शटल को सिर के ऊपर से मारना चाहिए। शटल हिट करते समय हाथ एवं रैकिट पूरा ऊपर उठा होना चाहिए तथा कलाई के झटके का प्रयोग करना चाहिए। 

 

ड्राप शॉट :-

            ड्राप शॉट एक ऐसा शॉट है जो सिर के ऊपर से मारा जाता है। यह फोरहैंड बैकहैंड तथा स्मैश द्वारा खेला जा सकता है। इन स्ट्रोकों में शटल को नेट के ऊपर इस प्रकार मारा जाता है कि वह नेट के जितना हो सके  पास ही गिरे। ड्रॉप शॉट में प्रारंभिक क्रिया ओवरहेड शॉट के समान ही है परन्तु इसमें कलाई का झटका थोड़ा हल्का रहता है।  इसमें शटल को प्यार से नेट के ऊपर से उतारते हैं। 
 



बैडमिंटन के नियम 


बैडमिंटन कोर्ट का माप :-

                                     बैडमिंटन का खेल एकल तथा युगल , दोनों रूपों में खेला जा सकता है और इन दोनों प्रकार के खेलो के लिए कोर्ट का माप अलग -अलग होता है कोर्ट का आकर आयताकार होना चाहिए। अकल खेलों के लिए कोर्ट की लम्बाई  13. 40  मी.  तथा चौड़ाई  17  मी. होनी चाहिए जबकि युगल खेलो के लिए यह 13. 40 मी. लम्बा तथा 6. 10 मी.  चौड़ा होना चाहिए। कोर्ट को निर्मित करने के लिए सफेद तथा लाल रंग की रेखाओं को रेखांकित किया जाना चाहिए। इन रेखाओं की चौड़ाई 4 से. मी.  होनी चाहिए। जाल के दोनों तरफ 6. 5 इंच  की रेखाओं को खींचा जाना चाहिए। साइड रेखा के सामानांतर एक रेखा को खींचा जाना चाहिए जो कोर्ट को दो बराबर भागों में विभक्त कर सके। कोर्ट के दोनों भागो को अलग -अलग नाम दिया जाता है, क्रमशः बयां सर्विस कोर्ट तथा दायां सर्विस कोर्ट। बैंक गैलेरी का आकर 2. 6 इंच  जबकि साइड गैलरी  का आकर 1. 6 इंच  होना चाहिए। 


                                                             


जाल :- 

           जाल को निर्मित करने के लिए गहरे रंग का धागा प्रयोग किया जा सकता है।  जाल की मोटाई 15 मि.मी.  से अधिक परन्तु 20 मि.मी  से कम होनी चाहिए। यह पोस्ट से पोस्ट तक भली प्रकार से बांधा जाना चाहिए। इसकी गहराई 67 से.मि  होनी चाहिए। फर्श से जाल का ऊपरी भाग 152 से.मी  की ऊंचाई पर स्थिति होना चाहिए  जबकि पोस्ट 155 से.मी  ऊंचाई पर होना चाहिए। जाल के अंतिम भाग तथा पोस्ट के बीच में किसी भी प्रकार का कोई रिक्त स्थान नहीं होना चाहिए। यदि आवश्यकता हो तो जाल की सम्पूर्ण गहराई को अंतिम भाग में बांटा जा सकता है। 

 

पोस्ट :-

           जाल को सीधा रखने के लिए मैदान में दो पोल गाड़ना होता है। इसे पोस्ट कहते हैं। इस पोस्ट की ऊंचाई मैदान से कम से कम 159 से.मी.  होती है।  नेट का कढ़ा रखने के लिए वह भली प्रकार से स्थिर रहना चाहिए।   यह साइड बाउंडरी रेखा के छेत्र में स्थित होता है। 

       

खेल की अवधि :-

                        प्रायः खेल निरंतर चलता रहता है परन्तु कुछ देशो में इसके मध्य अधिकतम पांच मिनट का अंतराल प्रदान किया जाता है। 


उचित सर्विस :-

                 पहले कौन सा खिलाड़ी शटल को सर्व करेगा इसका निर्णय करने के लिए रैकिट को स्पिन देकर रफ अथवा स्मूथ बोला जाता है और जो खिलाड़ी सही बोलता है , उसी को साइड चुनने का अधिकार सबसे पहले दिया जाता है। सर्विस को उसी समय दिया जाना चाहिए जब उसे प्राप्त करने वाला खिलाड़ी तैयार हो। 


साइड का चुनाव:-

                           यदि खिलाड़ी के अंक सम हो तो वह दाहिने तरफ के कोर्ट से सर्विस करेगा और उसके अंक विषम हो तो वह आपने बाएं कोर्ट से सर्व करेगा।  
युगल प्रतियोगिताओं में सर्व करने की विधि जटिल होती है।  इसके अंतर्गत यदि सर्विस करने वाला खिलाड़ी पहले अंक अर्जित करता है तो वह अपने बाएं कोर्ट से विपक्षी टीम के बाएं कोर्ट में शटल फेकेगा और वह खिलाड़ी जिसने पहले सर्विस नहीं ली थी अब वह सेर्वेस को प्राप्त करने वाला बन जायगा। 

त्रुटियाँ :-

             यदि कोई  खिलाड़ी नियमों का उलंघन करके खेलता है तो उसे प्रतियोगिता से बाहर भी किया जा सकता है। 
यदि शटल को सर्व करते समय खिलड़ी का हाथ कंधे से ऊपर हो तो इसे गलत माना जाता है। यदि शटल को सर्व करते समय सर्वर का पैर सर्विस कोर्ट में न हो तो इसे भी गलत माना जाता है। यदि शटल को उस समय पर हिट किया जाय जब वह विपक्षी के पाले में हो। यदि शटल खेल में हो तो खिलाड़ी जाले को या उससे सम्बंधित किसी भी उपकरण को छूने का प्रयास करे। यदि सर्व करते समय सर्वर का पैर जमीन से उठ जाय। 

                  

 लैट :-

         लैट उस स्थिति में प्रदान किया जाता है जब सर्विस के दौरान शटल नेट को स्पर्श करती हुई उसे पार करती है। ऐसी स्थिति में रैली तथा उससे प्राप्त होने वाले अंक को गिना नहीं जाता।  ऐसे समय में खिलाड़ी को पुनः शटल को सर्व करने का अवसर प्रदान किया जाता है। लैट के लिए खिलाडियों को किसी भी प्रकार की अपील नहीं करनी पड़ती। यदि सर्विस करने वाला गलत कोर्ट में खड़े होकर सर्व करता है , उस स्थिति में भी एकल प्रतियोगिताओं में लैट प्रदान किया जाता है। युगल खेलों में भी लैट के नियम यही रहते हैं। 


वेशभूषा :-

              बैडमिंटन खिलाडियों के वस्त्रों में मुख्यतः जर्सी ,जुराबें तथा रबर सोल के जूते सम्मिलित होते हैं। महिलाओं के लिए प्रयोग की जाने वाली वेशभूषा में स्कर्ट ,जुराबें ,जर्सी तथा जूतों को सम्मिलित किया जाता है। 


साइड परिवर्तित करना :-

                                             प्रत्येक गेम के पश्चात् खिलाडियों के लिए साइड परिवर्तित करना आवश्यक होता है। पाले उस स्थिति में भी बदले जाते हैं जब 15 अंकों के खेल में खिलाड़ी 12 अंक बना लेता  है, 11 अंकों के खेल में 6 अंक बना लेता है और 21 अंकों के खेल में 11 अंक बना लेता है। 


स्कोरिंग :-

               केवल वही टीम व साइड अंक प्राप्त कर सकती है जो शटल को सर्व कर रही हो।  पुरषों का 21 तथा 15 अंकों का होता है जबकि महिलाओं का एक खेल 11 अंकों का होता है।  मैच का निर्णय लेने के लिए कम से कम तीन गेमें अवश्य खेली जाती हैं। 


                         प्रयोग किये जाने वाले उपकरण :-

                                                   

रैकिट :-

           यह लकड़ी या स्टील से निर्मित होती है। प्रायः इसका भार 4  से 5 औंस होता है।  

शटल :-

           एक शटल में कुल 14 या 15 पंख होते हैं। शटल का भार 4. 75 से 5. 50 ग्राम से अधिक नहीं होता है। 

बैडमिंटन में अधिकारी :-

                   अंक गणना का जिम्मेदार केवल अम्पायर ही होता है। वह चाहे
तो सर्विस जज और लाइनमैन रख सकता है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर की प्रतिस्पर्धाओं में इन्हीं तीनों को नियुक्त किया जाता है।  

अम्पायर :-

               अम्पायर का निर्णय अंतिम तथा सर्वमान्य होता है ,अथार्त कोई भी खिलाड़ी उसका विरोध नहीं कर सकता। खेल के मैदान व कोर्ट भली प्रकार से तैयार है या नहीं, इसे सुनिश्चित करने का काम अम्पायर का होता है। अन्य अधिकारीगण ,अथार्त सर्विस जज तथा लाइनमैन भली प्रकार से अपने कार्यों को जानते हैं और सही स्थान पर स्थानांतरित करते हैं, इसे देखना भी

अम्पायर का काम होता है। सभी आवश्यक सामग्री खिलाड़ियों को प्राप्त की जा चुकी है , इसका ध्यान भी अम्पायर ही रखता है।  
जैसा की ज्ञात है कि खेल को आरम्भ करने से पूर्व सिक्का उछाला जाता है, अम्पायर को यह सुनिश्चित करना होता है कि यह कार्य सही प्रकार से की गई है और कोई भी खिलाड़ी इस क्रिया में जानबूझ कर लाभ प्राप्त तो नहीं कर रहा है। खिलाड़ीयों द्वारा अर्जित अंकों का पूरा ब्यौरा वह रिकॉर्ड करेगा। खेल की अवधि में होने वाले अंतराल को वह तेजी से कहेगा ताकि खिलाड़ी तथा दर्शकों को इस बात का पता चल जाय।  
पुरूषों के खेल मे यदि कोई खिलाड़ी 14 अंक या महिलाओं के खेल में यदि कोई खिलाड़ी 10 अंक प्राप्त कर लेता है तो तेजी से खेल अंक या गेम पॉइंट कहने का काम भी अम्पायर का होता है। अम्पायर का एक महत्वपूर्ण कार्य खिल को बिना रुके संपन्न करने का भी है। उसे यह देखना होता है की कोई भी खिलाड़ी जानबूझ कर खेल को रोक कर न रखे और इस प्रकार किसी भी प्रकार का कोई लाभ उसे प्राप्त न हो। यदि कोई खिलाड़ी खेलते वक्त जख्मी हो गया है तो वह खेल को रोक सकता है और उपचार का लिए व्यवस्था करता है। यदि कोई खिलाड़ी को कोई प्रश्न करना है तो वह उनका उत्तेर देने के लिए जिम्मेदार होता है और उन्हें सही उत्तेर देना का कर्तव्य होता है। 
इस प्रकार दर्शकों तथा खिलाड़ीयों को खेल की स्थिति के बारे में समय -समय से अवगत कराना अम्पायर का कार्य होता है। अम्पायर को अधिकारिओं में सबसे महत्वपूर्ण समझा जाता है और उसका स्थान सबसे महत्वपूर्ण होता है। 


सर्विस जज :-

                   सर्विस जज सदैव एक छोटी कुर्सी पर बैठा होता है। उसकी कुर्सी नेट के पास होती है परन्तु वह अम्पायर के सामने होता है। सर्विस करने वाले खिलाड़ी ने सही प्रकार से सर्विस की या नहीं, इसे देखने का मुख्य
कार्य सर्विस जज का होता है।  उसे यह देखना होता है की सर्वर तब तक सर्विस न करे जब तक विरोधी खिलाड़ी सर्विस लेने के लिए तैयार न हो जाय,हालाकि यदि विरोधी खिलाड़ी शटल को हिट कर दे तो वह सर्विस के लिए तैयार माना जाता है।  उसे यह देखना होता है कि सर्वर किसी भी प्रकार से अनुचित न करे और यदि करे तो उसे भली प्रकार से आगाह करने का कार्य सर्विस जज का होता है।   यदि उसे लगे सर्वर ने सही प्रकार से सर्विस नहीं की है तो उसे तेजी से फाउल कहना होता है जिससे अधिकारीगण तथा खिलाड़ी दोनों को यह पता चलता है कि उसने सर्विस सही प्रकार से नहीं की है।  

1. सर्विस करते समय यदि खिलाड़ी शटल के आधार पर रैकिट नहीं लगता
तो वह एक त्रुटि है जो इस संकेत द्वारा दर्शाई जाती है -


 2. यदि सर्व करते समय शटल सर्वर के कमर से ऊँची हो तो इसे एक त्रुटि माना जाता है जिसे निम्न संकेत द्वारा दर्शाया जाता है -


3. यदि सर्वर अपने पैर सर्विस कोर्ट से सर्विस पूरा हो जाने से पहले ही हटा
देता है तो वह एक त्रुटि होती है जो निम्न संकेत द्वारा दर्शाई जाती है -


लाइनमैन :-

                यह अधिकारी पूर्ण रूप से कोर्ट पर खिंचे हुए लाइनों के लिए उत्तरदायी होते हैं। यदि खेल का दौरान शटल लाइन के बाहर चली जाय तो लाइनमैन का यह कर्तव्य होता है कि वह तीव्र से आउट बोलेगा, जिससे अधिकारी तथा खिलाड़ी दोनों इस बात से अवगत हो जाएं। यदि आवश्यकता हो तो एक से अधिक लाइनमैन को नियुक्त किया जा सकता है। 


यदि शटल लाइन के बाहर चली जाती है तो लाइनमैन द्वारा निम्न संकेत प्रयोग किये जाते हैं -

    यदि वह सही प्रकार से न देख पा रहा हो ,अर्थात यदि उसके देखने में कोई बाधा आ रही हो तो वह निम्न संकत प्रयोग करता है -  

            

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