Thursday, 18 February 2021

बास्केटबॉल, नियम , स्टेप्स तथा इतिहास

 परिचय (Introduction):-

                                                        बास्केटबॉल एक टीम में खेलने वाला
खेल है जिसे सर्वप्रथम अमेरिका में खेला गया था। आज यह बहुत ही लोकप्रिय खेल के रूप में पहिचान बना चुका है और इससे सम्बंधित नियमों को निर्मित करने का कार्य बास्केटबॉल फेडरेशन द्वारा किया जाता है। बास्केटबॉल का खेल दो टीमों द्बारा खेला जाता है ,जिसमें पांच -पांच खिलाड़ी होते हैं। प्रत्येक खिलाड़ी का उद्देश्य गेंद को इस प्रकार फेंकना होता है कि वह विपक्षी खिलाड़ी के क्षेत्र में स्थित बास्केट में जाकर गिरें। गेंद को कोर्ट पर किसी भी दिशा में फेंका या ड्रिबल किया जा सकता है। मुख्यतः यह एक इंडोर गेम होता है परन्तु इसे खुले मैदानों पर भी आयोजित किया जा सकता है। यह दोनों लिंग के खिलाड़ीयों द्वारा खेला जा सकता है तथा सभी आयु वर्ग के व्यक्ति इसमें आसानी से हिस्सा ले सकते हैं। एक कुशल बास्केटबॉल खिलाड़ी बनने के
लिए एक व्यक्ति में स्वस्त तन तथा दिमाग का होना अति आवश्यक होता है। खिलाड़ी की लम्बाई एक महत्वपूर्ण कारक होती है जो यह तय करती है है की व्यक्ति कुशल बास्केटबॉल खिलाड़ी बन सकता है या नहीं और यही कारण है कि लम्बे खिलाड़ीयो को ही टीम में सम्मलित किया जाता है। खेल को जम्प गेंद के साथ आरंभ किया जाता है जो सेण्टर सर्किल से फेंकी जाती हैं। प्रत्येक टीम से एक -एक खिलाड़ी कोर्ट के बीच में आ कर खड़ा होता है और उन दोनों के बीच में रेफरी गेंद को उछालता है दोनों खिलाड़ी हवा में उड़ते हैं और गेंद को पहले
पकड़ने का प्रयास करते हैं। जो खिलाड़ी गेंद को पहले पकड़ लेता है, गेंद उसके कब्जे में चली जाती है। खेल को चार वर्ग में विभाजित किया जाता है और प्रत्येक वर्ग में 10 मिनट का अंतराल दिया जाता है। जितनी बार भी एक टीम के खिलाड़ी गेंद को विपक्षी टीम के पाले में स्थित बास्केट में फेंकने में सफल होता है ,उसी आधार पर उन्हें अंक प्रदन किये जाते हैं और खेल के अंत में अधिकतम अंक बनाने वाली टीम को विजेता घोषित कर दिया जाता है। 


              बास्केटबॉल के कौशल :-

                                                                                                          बास्केटबॉल के खेल में विभिन्न प्रकार के कौशलों का प्रयोग किया जाता है ,जो इस प्रकार हैं -
       (1) प्रारंभिक स्थिति 
       (2) पासिंग 
     (3) गेंद को संचालित करना 
     (4) जंपिंग 
     (5) दौड़ 
     (6) पिवट 
     (7) ड्रिबलिंग 
     (8) गेंद पकड़ना 
     (9) चकमा देना 
     (10) शूटिंग 
     (11) प्रतिक्षेप 

(1) प्रारंभिक स्थिति :-

                                बास्केटबॉल के खेल में खिलाड़ी कि गतिविधि केवल उसकी प्रारंभिक स्थिति पर ही निर्भर करती है इसलिए बास्केटबॉल के खेल में प्रारंभिक स्थिति बहुत महत्वपूर्ण होती है। यह आक्रमण तथा बचाव करने वाले खिलाड़ीयों पर लागु होता है। खिलाड़ी की प्रारंभिक स्थिति ही उसे किसी दिशा में क्रियाशील होने में सहायता करती है। यही कारण है कि सभी खिलाड़ियों को प्रारम्भिक स्थिति को भली प्रकार से ग्रहण करना आवश्यक होता है। 
 

(2) पासिंग :-

                   बास्केटबॉल खेल में पासिंग कौशल बहुत महत्वपूर्ण कौशल होता है जिसके द्वारा गेंद को अपने नियंत्रण में रखने के लिए तथा उसे विपक्षी
टीम के मैदान में स्थित बास्केट की तरफ ले जाने के लिए खिलाड़ी उपयोग करते हैं। पासिंग का अर्थ होता है गेंद को अपने ही टीम के किसी खिलाड़ी के तरफ इस प्रकार इस तरह से फेंकना कि उसे विपक्षी टीम का खिलाड़ी अपने कब्जे में न ले सके। यह तकनीक बास्केटबॉल खेल के लिए जितना अधिक आवश्यक है ,उतना ही अधिक कठिन होता है इसे भली प्रकार से प्रयोग करना आना चाहिए। इस कौशल को सीखने के लिए खिलाड़ी को कड़ी मेहनत की आवश्यकता होती है। 


(3) गेंद को संचालित करना :-

                                            बास्केटबॉल एक ऐसा खेल है जिसमे खिलाड़ी
गेंद को अपने हाथों के अलावा शरीर के किसी अन्य भाग से छू नहीं सकते। 
इस प्रकार गेंद को संचालित करने के लिए खिलाड़ी के हाथों तथा उनकी उंगुलियां का विशेष स्थान होता है। ऐसा करते समय खिलाड़ी को अपने हाथों की अँगुलियों को सही स्थान पर रखना चाहिए। गेंद के केंद्र बिंदु से अँगुलियों को हटा कर रखना चाहिए और उन्हें

इस प्रकार से फैलाना चाहिए कि वह एक दूसरे सामानांतर - सी प्रतीत होनी चाहिए। गेंद को भली प्रकार से पकड़ने के लिए सदैव हाथों की अँगुलियों का प्रयोग किया जाना चाहिए और इसके लिए कभी भी हथेली का प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से गेंद हाथ से फिसल सकती है और विपक्षी टीम के खिलाड़ी द्वारा प्राप्त की जा सकती है। 



(4) जंपिंग :-

                 एक बास्केटबॉल खिलाड़ी को कई बार गेंद को लेकर हवा में उछालना पड़ता है जो विभिन्न कारणों से किया जा सकता है। ऐसा वह गेंद
को अन्य खिलाड़ी को पास करने के लिए भी कर सकता है और ऐस गोल करने का लिए भी कर सकता है। जंपिंग से यहाँ यह तात्पर्य है कि हवा में ऊँची से ऊँची कूद लगा पाना। एक कुशल बास्केटबॉल खिलाड़ी में न केवल तीव्रता से दौड़ने की क्षमता होनी चाहिए बल्कि उसमें ऊँची कूद लगाने की कला को भी होनी चाहिए। 



(5) दौड़ :-

             विभिन्न प्रकार की गतिविधियों को पर क्रियान्वित करने के लिए बास्केटबॉल खिलाड़ीयों के पास जो साधन उपलब्ध होता है वह होता है दौड़। विभिन्न स्थितियों में बास्केटबॉल के खिलाड़ियों द्वारा विभिन्न प्रकार की दौड़ का प्रयोग किया जाता है। 


(6) विपट :-

                बास्केटबॉल का खेल एक ऐसा खेल है जिसमें गेंद को अपने नियंत्रण में रखने के लिए या वह अपने किसी खिलाड़ी को पास करने के लिए किसी भी दिशा में घूम सकता है और उसके द्वारा कोर्ट पर घूमने की कला को ही विपट का नाम दिया गया है। 


(7) ड्रिब्लिंग :-

                    बास्केटबॉल खेल का एक महत्वपूर्ण कौशल होता है ड्रिब्लिंग जिसे आक्रमण करने वाले खिलाड़ियों तथा सुरक्षा करने वाले खिलाड़ियों ,दोनों प्रकार के खिलाड़ियों द्वारा प्रयोग किया जाता है और दोनों के लिए यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है।
इस कौशल को यदि सरल भाषा में व्यक्त किया जाय तो गेंद को कोर्ट पर एक खिलाड़ी द्वारा चलाना ही ड्रिबलिंग कहलाता है। 






(8) गेंद पकड़ना :-

                           गेंद को पकड़ने के लिए सबसे आवश्यक बात जिस पर खिलाड़ी को ध्यान रखना चाहिए वह यह होती है कि यह कभी भी यह प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए कि गेंद उसके पास आएगी बल्कि उसे गेंद की तरफ बढ़ना चाहिए और उसे प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए परन्तु
उसे ऐसा करते वक्त उसे कभी गेंद की तरफ झपटना नहीं चाहिए। उसे अपने हाथों को आगे की तरफ रखना चाहिए और उसे सही अवसर पर हाथों की सहायता से पकड़ लेना चाहिए और उसके पश्चात् अपने हाथों को गेंद के साथ अपनी छाती की खींचना चाहिए 


(9) चकमा देना :-

                          बास्केटबॉल के खेल में सभी खिलाड़ियों का मुख्य उद्देश्य गेंद को अपने नियंत्रण में रखकर उसे बास्केट में डालना होता है और उससे अधिक से अधिक अंक प्राप्त करना होता है। गेंद को नियंत्रित करने के लिए प्रायः एक खिलाड़ी को विपक्षी टीम के खिलाड़ियों को चकमा देना पड़ता है जिसे तकनिकी भाषा में फेटिंग करना और साधारण भाषा में चकमा देना कहा जाता है। 


(10) शूटिंग :-

                    गोल को दागने के  लिए जिस साधन या शास्त्र को प्रयोग किया जाता है ,वह होता है गेंद को बास्केट में शूट करना और उस कौशल को शूटिंग कहा
जाता है। शूटिंग एक ऐसा कौशल है जिसके बिना एक खिलाड़ी अधूरा माना जायेगा।यदि खिलाड़ी को शटिंग के अलावा बास्केटबॉल के सभी कौशल का पूर्ण ज्ञान हो तो वह कभी भी एक कुशल बास्केटबॉल खिलाड़ी नहीं बन पायेगा। अन्य सभी कौशल ,जिनका प्रयोग इस खिल में किया जाता है ,शूटिंग के खुशाल की सहायक मानी जा सकती है।  



(11) प्रतिक्षेप (रिबाउंड) :- 

                                     प्रतिक्षेप या रिबाउंड उस स्थिति को कहते है जब किसी टीम का कोई खिलाड़ी गोल करने के उद्देश्य से गेंद को बास्केट में फेंकता है परन्तु वह बास्केट में प्रविष्ट होने के स्थान पर जाकर बैक बोर्ड
से टकरा जाती है तो उसे स्थिति में जमीन की तरफ आती हुई गेंद को दोबारा पकड़ लेना प्रतिक्षेप या रिबाउंड कहलाता है। इस प्रकार से प्रायः गोआल दागने का प्रयास करते समय  होता है और इसके पश्चात् टीम के खिलाड़ी द्वारा गेंद को फिर से पकड़ लेना बहुत लाभकारी तथा महत्वपूर्ण साबित होता है क्योंकि उस समय खिलाड़ी बास्केट के समीप ही खड़ा होता है और वह उसी समय गोल करने का प्रयास दोबारा कर सकता है। 


              बास्केटबॉल के नियम 

कोर्ट का स्वरूप :-

                       बास्केटबॉल को इंडोर गेम की श्रेणी में
रखा जाता है अर्थात इसे खेलने के लिए ज्याद लम्बे चौड़े मैदान की जरूरत नहीं होती और इसे बड़े से हाल के भीतर भी आसानी से खेला जा सकता है। ध्यान में रखने वाले बात यह यही कि खेल के लिए निर्धारित कोर्ट आयताकार और ठोस धरातल होना चाहिए और उसमे किसी भी तरह के बाधा अथवा उठान - ढलान नहीं होनी चाहिए। अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में बास्केटबॉल का कोर्ट 28 मी. लम्बा और 15  मी.  चौड़ा होना चाहिए।

 
आजकल सभी देश अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं को ध्यान में रखकर ही खेलों का प्रशिक्षण देते हैं ,इसलिए सभी जगह सामान्यतः इसी आकर के कोर्ट का इस्तेमाल किया जाता है।  बास्केटबॉल की प्रतियोगिता यदि किसी हाल के भीतर खेली जा रही है तो
उस हाल के छत की ऊंचाई कम से कम 7 मीटर होनी चाहिए। खेल के दौरान खिलाड़ियों के सुरक्षा के लिए एक समान  प्रकार व्यवस्था का होना भी जरूरी है और यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि प्रकाश इकाई जैसे बल्ब या ट्यूब लाइट ऐसे स्थान पर लगे होने चाहिए, जिससे खिलाड़ियों की आँखों पर इनकी सीधी चमक न पड़े अन्यथा उनके खेल में बधा आ सकती है। 
 

कोर्ट का सीमांकन :-

                                          खेल के दौरान चूँकि कोर्ट का स्थान खेल में महत्वपूर्ण होता है इसलिए यह आवश्यक है कि कोर्ट के रेखाओं का सीमांकन भली प्रकार से किया जाय ,नियमों के अनुसार कोर्ट के आकर का निर्धारण करने वाली रेखा की चौड़ाई कम से कम 0. 05 मीटर होनी चाहिए और यह धरातल के रंग के विपरीत रंग की होनी चाहिए ताकि खिलाड़ियों को आसानी से दिखाई दे सके। उदाहरण के लिए यदि धरातल का रंग सफ़ेद है तो सीमांकन रेखा काली या किसी अन्य गहरे रंग की होनी चाहिए। टूटी फूटी या अधमिटी रेखाओं के खेल में व्यवधान उत्पन्न हो सकता है। इस खेल में खिलाड़ियों को लगातार भागते रहना होता है इसलिए कोर्ट के सीमा रेखाओं से दर्शकों के बैठने का स्थान और विज्ञापन के बोर्ड भी कम से कम दो मिटर की दूरी पर होने चाहिए। कोर्ट को चिन्हित करने वाली लंबवत रेखाओं को पार्शव रेखाएं कहा जाता है ,जबकि चौड़ाई में पड़ी रेखाओं को अंत रेखा का नाम दिया गया है। 

मध्य वृत्त :-

              कोर्ट के बीचों बीच एक वृत्त बना होता है जिसे केंद्रीय अथवा मध्य वृत्त कह सकते है। इसका अर्धव्यास 0. 80 मीटर होना चाहिए और ऐसे
अर्धव्यास को वृत्त के बाहरी भाग से मापा जाता है।  इसे तरह केंद्रीय रेखा पाशर्व रेखाओं के ठीक बीच में कोर्ट को दो भागों में विभाजित करने के लिए खींची जाएगी और इसी के दोनों ओर दोनों टीमों के पालों का निर्धारण किया जायेगा। टीमों के पालों को भी दो भागों में बाँटा जा सकता है। इसमें पाले का वह भाग जो विपक्षी टीम की बास्केट के पीछे अन्तः सीखा और केंद्रीय रेखा के किनारे के मध्य में आता है टीम के आगे का क्षेत्र कहलाता है और पाले का अन्य भाग केंद्रीय रेखका सहित टीम का पीछे का क्षेत्र माना जाता है।  


बास्केट एवं अर्धवृताकार क्षेत्र :-

                                              यह स्थान कोर्ट का हिस्सा है जो दोनों टीमों
के पाले की पाशर्व रेखाओं के भीतर दो वृतों में चिन्हित होता है। बड़ा अर्धवृत पाशर्व रेखा के दोनों तरु 1. 25 मीटर का स्थान छोड़कर अंकित किया जाता है। इस अर्धवृत्ताकार के भीतर ही बास्केट और उसके इर्द - गिर्द एक और वृत्त अंकित किया जाता है। भीतरी वृत्त का अर्धव्यास 6. 25 मिटेर का होता है और इसके बाहरी आधा भाग को सामान्य

सीखा से जबकि भीतरी आधे भाग को भग्न रेखा से चिन्हित कियाजाता है। यह वृत्त पाशर्व रेखाओं के समानांतर अन्तः रेखाओं पर समाप्त हो जाता है। यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि अन्तः रेखाओं के भीतरी किनारे के मध्य बिंदु से बनाये गए वृत्त के केंद्र बिंदु का फासला 1. 575 मीटर ही होनी चाहिए। यह सीमांकन कोर्ट के दोनों ओर ही टीमों के लिए एक समान किया जाता है। 


विविध खेल क्षेत्र :-

                             खेल के दौरान पाले की रेखाओं के अनुरूप ही खिलाड़ीयों को अपने खेल का निर्धारण और निष्पादन करना जरुरी होता है। इसके अंतगत कुछ भाग को नियंत्रित क्षेत्र कहा जाता है और कुछ को मुक्त क्षेपण क्षेत्र की श्रेणी में रखा जाता है। अब हम यह जानेंगे कि नियंत्रित क्षेत्र और मुक्त क्षेपण क्षेत्र में क्या अंतर होता है। नियंत्रित क्षेत्र वह भाग होता है ,जिनकी परिधि अन्तः सखाओं और मुक्त क्षेपण रेखाओं से निकलने वाली रेखाओं द्वारा निर्धारित होती है।  


फ्री थ्रो रेखाएं और क्षेत्र :-

                                    पाशर्व रेखा से 5. 80 मीटर की दूरी पर बनी 3. 6
मीटर लम्बी रेखा को फ्री थ्रो रेखा कहा जाता है और इसी तरह प्रतिबंधित क्षेत्र और फ्री थ्रो लाइन के मध्य बिंदु को 1. 80 मीटर के अर्धव्यास वाले अर्धवृत के बीचोंबीच वाले क्षेत्र भी होता है जो सीमान्त रेखा के भीतर किनारे से 1. 80 मीटर के फासले पर स्थित हॉट है।  इस क्षेत्र के सीमांकन के लिए टेढ़ी रेखा पर माप लिया जाता है , जिसके लिए सीमान्त रेखा पर 85 सेंटीमीतर चौड़ा और 10 सेंटीमीटर लंबा चिन्ह लगाया जाता है। कोर्ट में इस तरह के तीन गलियारे बनाये जाते हैं और पहले हलियारे के बाद ०. 30 मेटर लंबा नूट्रल जोन होता है। 

बोनस लाइन :-

                     बास्केट वाले रिंग के ठीकनीचे के बिंदु से 6. 25 मीटर की दूरी पर बनाये जाने वाले अर्धवृत को बोनस लाइन कहा जाता है। 


बैक बोर्ड :-

               कोर्ट के आकर प्रकार जान लेने के बाद अब खेल के एक और

महत्वपूर्ण भाग अर्थात बैक बोर्ड के आकर के बारे में जान लेना जरूरी है। इसी बैक बोर्ड पर बास्केट लगाई जाती है जो इस खेल का मूल आधार होता है। कोर्ट के दोनो ओर दोनों टीमों के लिए बैक बोर्ड बने होते हैं।  इस बैक बोर्ड को मैदान के दोनों किनारों पर अंतिम रेखाओं के सामानांतर मजबूती से गाड़ा जाता है यह बैक बोर्ड 0. 03 मीटर मोती लकड़ी या फिर किसी अन्य ठोस पारदर्शी पदार्थ से बनाए जा सकते है। इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि यह बोर्ड एक ही टुकड़े से बना हो अर्थात इसमें कीड़ी
तरह का कोई जोड़ न हो। बोर्ड की लम्बाई 1. 80 मीटर और चौड़ाई 1. 05 मीटर होनी चाहिए और जिन खंबों पर बोर्ड टिका रहता है उनके बीच की दूरी एक मीटर होनी चाहिए। बोर्ड के निचले सरे की कोर्ट के फर्श से दूरी 2. 75 होनी चाहिए। बैक बोर्ड के किनारों को 0. 05 मीटर मोती रेखा से चिन्हित किया जाता है और इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि बैक बोर्ड को चिन्हित करने वाली रेखा उसके पृष्ठ भाग के रंग से एकदम भिन्न हो ताकि खिलाड़ियों को उसे देखने में कोई परेशानी न हो।  


टीमें :-

         प्रत्येक टीम में दस खिलाड़ी होते हैं ,हालांकि मैच के समय हमें कोर्ट में दोनों ही तरफ से केवल पांच - पांच खिलाडी ही खेलते हैं ,लेकिन बास्केट- बॉल चूँकि बहुत भागदौड़ तथा फुर्तीला खेल है इसलिए मैच के दौरान किसी
खिलाडी के थक जाने पर अथवा किसी को चोट लग जाने पर उसके स्थान पर दुसरे खिलाड़ी को मैदान में भेजने का प्रावधान होता है।  जिन प्रतियोगिताएं ने  तीन से अधिक गेम का मैच होता है , वहां टीम में 12 खिलाड़ी रखने का प्रावधान होता है।  इनमें कोर्ट में तो पांच -पांच खिलाड़ी ही उतरते हैं ,लेकिन स्थानापन्न अथवा अतिरिक्त खिलाड़ियों की संख्या बढ़ा दी जाती है। मैच शुरू होने के बाद दोनों ही टीमों के अतिरिक्त खिलाड़ियों को कोर्ट के बाहर ही रखना होता है और कोर्ट के भीतर मौजूद खिलाडी अधिकारी की अनुमति से ही बहार जा सकते हैं। इसी तरह कोर्ट के बाहर मौजूद खिलाड़ी उस समय तक अतिरिक्त  ही रहते हैं, जब तक कि उन्हें कोच से किसी खिलाड़ी के स्थान पर कोर्ट में उतरने की अनुमति नहीं मिल जाती। 


                    खेल के नियम :-

खेल की अवधि :-

                         मैच को दो बीस -बीस मिनट के दो हाफ अथवा सत्र में खेला जाता है और दोनों हाफ के बीच में मध्यांतर , जिसमे खिलाड़ी दस मिनट तक विश्राम करते हैं। आवश्यकता होंने पर विश्राम अर्थ मध्यांतर के समय को 15 मिनट तक भी बढ़ाया जा सकता है।  किसी टूर्नामेंट अथवा प्रतियोगिता में इस सम्बन्ध में पहले से नियम निर्धारित कर लिया जाता है और फिर हर मैच में मध्यांतर का समय सामान ही आता है। किसी एक मैच के लिए इसमें कोई परिवर्तन नहीं किया जाता है।  बीस - बीस मिनट के दो सामान्य हाफ के खेल के बाद मैच के विजेता का फैसला न हो तो अर्थात दोनों ही टीमों के सामान अंक हों तो खेल पांच - पांच मिनट के अतिरिक्त सत्रों में चलता रहता है।  पहले हाफ में टीमें टॉस करके बास्केट का फैसला करती हैं और उसके बाद निरंतर पाले बदले जाते हैं।  यदि खेल समाप्ति के समय और या फिर पहला हाफ ख़त्म होने के संकेत के साथ ही कोई टीम फ़ाउल कर देती है तो उसके लिए अतिरिक्त समां देने का प्रवदहं है ताकि फाऊल करने वाली टीम को कोई फायदा न हो और फाऊल झेलने वाली टीम को उसका पूरा मुआवजा मिल सके। 


खेल का प्रारंभ :-

                        खेल शुरू करवाने के लिए रेफरी दोनों टीमों के कप्तानों के बीच टॉस करवाता है। टॉस  जीतने वाली टीम ही यह फैसला करती है कि उसे किस पाले में खेलना है हालांकि मैच के मध्यांतर के बाद दोनों ही टीमों के पाले बदल जाते है। लेकिन मैच के शुरू में अपनी पसंद का पाला चुनने का अधिकार टॉस जीतने वाले कप्तान को दिया जाता है। अतिरिक्त अवधि क सत्रों में भी टीमें अपने पाले आपस में बदल लेती हैं। 

टॉस के बाद पाले का निर्धारण होने पर रेफरी दोनों टीमों के पांच - पांच खिलाडियों की मौजदगी में गेंद को केंद्रीय वृत्त से ऊपर की ओर उछाल देता है और इसके साथ ही खेल शुरू हो जाता है। रेफरी द्वारा इस तरह से गेंद उछलने को जम्प बॉल कहा जाता है। दूसने हाफ और अतिरिक्त समय के प्रत्येक हाफ में भी खेल जम्प बॉल से ही शुरू होता है। खेल शुरू होने के बारे में एक और नियम का पालन किया जाता है, जिसके अनुसार खेल शुरू होने के समय दोनों टीमों के पांच -पांच खिलाडियों का मैदान में उपस्थित होना आवश्यक होता है और यदि खेल शुरू होने के समय तक केवल एक ही टीम मैदा में पहुंची हो तो दूसरी टीम के आगमन का 15 मिनट तक इन्तजार किया जाता है और उसके बाद दूसरी टीम के अनुपस्थित मानकर कोर्ट में मौजूद टीम को ही मैच का विजेता घोषित कर दिया जाता है। 

खेल शुरू करने के लिए रेफरी द्वारा गेंद उछालने के समय दोनों टीमों का एक -एक खिलाडी आने पाले की तरफ के अर्धवृत में पांव रखकर खड़े रहते है। और उनका दूसरा पांव कोर्ट के बीचों बीच खींची रेखा के केंद्र के पार होता है। दोनों खिलाड़ियों के निर्धारित मुद्रा में खड़ा होने के बाद रेफरी गेंद को उप्पेर की ओर उछलता है। 







Tuesday, 16 February 2021

बैडमिंटन , नियम , स्टेप्स तथा इतिहास

Introduction(परिचय ) 

                                                 यह सबसे पहले इंग्लैंड में 1873 में खेला गया था।  बैडमिंटन का खेल खेलना बहुत आसान है | इसमें खिलाड़ी को रैकिट के सहायता से शटल को इस प्रकार से हिट करना होता है कि वह नेट को पार करके विपक्षी खिलाड़ी के पाले में पहुंच जाय | शटल  इस प्रकार से निर्मित की जाती है कि वह थोड़ी सी ताकत के साथ हिट करने पर हवा में उछल जाता है | 

आज बैडमिंटन का खेल दोनों लिंग तथा आयु वर्ग के व्यक्तियों द्वारा खेला जाता है | यह खेल एकल तथा युगल दोनों रूपों में खेली जा सकती  है | अकल खेल में दोनों टीमों में एक -एक खिलाड़ी होते हैं जबकि युगल खेल में दोनों टीमों में दो-दो खिलाड़ी होते हैं | खेल को जीतने के लिए खिलाड़ी को अपने विपक्षी खिलाड़ी को हराना आवश्यक होता हैं और इसके लिए उसे अपने विपक्षी खिलाड़ी की अपेक्षा अधिक अंको को बटोरना आवश्यक होता है | 

                                          

एक कुशल बैडमिंटन खिलाड़ी बनने के लिए व्यक्ति को केवल शारीरिक रूप से स्वस्थ होना ही अनिवार्य नहीं होता बल्कि उसे मानसिक रूप से भी बहुत प्रबल होना चाहिए | वह खिलाड़ी  जो शटल को पहले हिट करता है वह "सर्वर"  कहलाता है जबकि जो खिलाड़ी शटल को बाद में हिट करता है वह "रिसीवर" कहलाता है | दोनों खिलाड़ी को सर्वर तथा रिसीवर बनने का अवसर प्रदान किया जाता है |  

  
                                             

                                       बैडमिंटन के आधारभूत स्ट्रोक 

            1 .         सीधे हाथ के स्ट्रोक 

            2.        सिर के ऊपर के स्ट्रोक 
  
            3.       उलटे हाथ के स्ट्रोक 


1.  सीधे हाथ के स्ट्रोक :-

                                       सीधे हाथ के स्ट्रोक में   शटल को शरीर के दाईं और से से मारा जाता है | इस स्ट्रोक को मरने हेतु खिलाड़ी को थोड़ा दाईं ओर घुमाना पड़ता है तथा पैर शरीर तथा बाजु स्ट्रोक मारने की स्थिति में लाने पड़ते हैं | खिलाड़ी का चेहरा कोर्ट की साइड रेखा की ओर होना चाहिए तथा शरीर का जाल से (90  अंश का कोण ) बनना चाहिए |


                            

सीधे हाथ के स्ट्रोक 

2. सिर के ऊपर का स्ट्रोक :-

                                                   इस स्ट्रोक में शटल को सिर के ऊपर से हाथ तथा रैकिट को जरा ऊपर ले जाकर मारा जाता है | इस स्ट्रोक को मरते समय खिलाड़ी को अपना बायां  पैर अपनी दाएं पैर से 14 - 16 इंच आगे , शरीर शटल के नीचे तथा शरीर का भर पिछले पैर पर रहना चाहिए | शरीर का भार पिछले पैर से अगले पैर पर लाने के साथ रैकिट के चपटे भाग से शटल को हिट करना चाहिए | बैडमिंटन खेल में यह सर्वाधिक प्रभावशाली स्ट्रोक है | यह टौस स्मैश तथा ड्राप शॉट में प्रयोग किया जाता है | 


सिर के ऊपर का स्ट्रोक 



3. उलटे हाथ के स्ट्रोक  :-

                             यह स्ट्रोक खिलाड़ी उस समय खेलता है जब शटल खिलाड़ी के शरीर के बाएं ओर  आ रही हो उसे वापस करने हेतु इस स्ट्रोक का प्रयोग किया जाता है जिससे शरीर सुगमतापूर्वक घूम सके | हाथ तथा कंधे भी रैकिट के बैक स्विंग के साथ पीछे चले जाने चाहिए | इस स्ट्रोक में यह आवश्यक है कि शटल से दूर रहा जाय तथा ठीक समय पर आगे स्विंग के साथ रैकिट तथा बाजू को पूरा आगे फैला कर शटल को खेला जा सके | इस स्ट्रोक में यह ध्यान रखने की बात है कि शटल मारते समय अँगूठे को हैंडल की साइड में तथा प्रथम उंगली को नीचे कर लिया जाय | ऐसा करने से रैकिट को सही धक्का मिलता है | 

                                                                                                         


               दूसरे स्ट्रोक :-

नैट स्ट्रोक :- 

                  जो शटल जाल के करीब गिरती है उसको खेलने तथा जाल पर कर 
विपक्षी कोर्ट में भेजने हेतु नैट स्ट्रोक का प्रयोग करना पड़ता है | इस शटल में शटल को इस प्रकार लौटाया जाता है कि वह विपक्षी कोर्ट में बिल्कुल नैट के पास ही गिरे परन्तु जाल अवश्य पार करना चाहिए | 
              


                                    मूलभूत शॉट :- 

लैब शॉट :-

               (क) मूलतः यह एक रक्षात्मक शॉट है जो शटल को विपक्ष की  उसके कोर्ट में ऊँचा तथा पीछा भेजता है | यह कोर्ट के किसी भी स्थान से सर के ऊपर से या नीचे से खेला जा सकता हैं | 
          (ख) क्लियर शॉट दो प्रकार के होते हैं |                                                              1. प्रतिरक्षात्मक क्लियर
                  2. आक्रामक क्लियर 
 


ड्राइव शॉर्ट :- 

                   यह एक सीधा या चपटा स्ट्रोक है जो नैट पार करने हेतु भूमि के सामानांतर मारा जाता है | यह आक्रमण का एक शक्तिशाली शास्त्र माना जाता है तथा शटल को तीव्र गति से मारने में सफल रहता है | ड्राइव, फोर हैंड तथा बैक हैंड दोनों प्रकार से खेला जा सकता है। ड्राइव में घुटने एवं कंधे के बीच के स्तर पर शटल से संपर्क होना चाहिए अर्थात इसमें शटल घुटने एवं कंधे की ऊंचाई के मध्य मारी जाती है तथा शटल , मारते समय , फैले हुए हाथ की दूरी पर होनी चाहिए।  यह स्ट्रोक अधिकतर साइड रेखा पर खेला जाता है किन्तु क्रॉस कोर्ट भी खेल सकते हैं। अधिकतर यह स्ट्रोक युगल खेल में आक्रामक स्ट्रोक के रूप में प्रयोग किया जाता है। 



स्मैश करना :-

                    इस स्ट्रोक में शटल को नीचे की ओर इतनी तीव्र गति से मारा जाता है की रैली समाप्त हो जाय तथा अंक अर्जित कर लिए जायं। स्मैश करने हेतुखिलाड़ी को पीछे जाकर शटल के नीचे स्थान लेना चाहिए। रैकिट को कलाई मोड़करपीछे स्विंग करना चाहिए तथा शटल को सिर के ऊपर से मारना चाहिए। शटल हिट करते समय हाथ एवं रैकिट पूरा ऊपर उठा होना चाहिए तथा कलाई के झटके का प्रयोग करना चाहिए। 

 

ड्राप शॉट :-

            ड्राप शॉट एक ऐसा शॉट है जो सिर के ऊपर से मारा जाता है। यह फोरहैंड बैकहैंड तथा स्मैश द्वारा खेला जा सकता है। इन स्ट्रोकों में शटल को नेट के ऊपर इस प्रकार मारा जाता है कि वह नेट के जितना हो सके  पास ही गिरे। ड्रॉप शॉट में प्रारंभिक क्रिया ओवरहेड शॉट के समान ही है परन्तु इसमें कलाई का झटका थोड़ा हल्का रहता है।  इसमें शटल को प्यार से नेट के ऊपर से उतारते हैं। 
 



बैडमिंटन के नियम 


बैडमिंटन कोर्ट का माप :-

                                     बैडमिंटन का खेल एकल तथा युगल , दोनों रूपों में खेला जा सकता है और इन दोनों प्रकार के खेलो के लिए कोर्ट का माप अलग -अलग होता है कोर्ट का आकर आयताकार होना चाहिए। अकल खेलों के लिए कोर्ट की लम्बाई  13. 40  मी.  तथा चौड़ाई  17  मी. होनी चाहिए जबकि युगल खेलो के लिए यह 13. 40 मी. लम्बा तथा 6. 10 मी.  चौड़ा होना चाहिए। कोर्ट को निर्मित करने के लिए सफेद तथा लाल रंग की रेखाओं को रेखांकित किया जाना चाहिए। इन रेखाओं की चौड़ाई 4 से. मी.  होनी चाहिए। जाल के दोनों तरफ 6. 5 इंच  की रेखाओं को खींचा जाना चाहिए। साइड रेखा के सामानांतर एक रेखा को खींचा जाना चाहिए जो कोर्ट को दो बराबर भागों में विभक्त कर सके। कोर्ट के दोनों भागो को अलग -अलग नाम दिया जाता है, क्रमशः बयां सर्विस कोर्ट तथा दायां सर्विस कोर्ट। बैंक गैलेरी का आकर 2. 6 इंच  जबकि साइड गैलरी  का आकर 1. 6 इंच  होना चाहिए। 


                                                             


जाल :- 

           जाल को निर्मित करने के लिए गहरे रंग का धागा प्रयोग किया जा सकता है।  जाल की मोटाई 15 मि.मी.  से अधिक परन्तु 20 मि.मी  से कम होनी चाहिए। यह पोस्ट से पोस्ट तक भली प्रकार से बांधा जाना चाहिए। इसकी गहराई 67 से.मि  होनी चाहिए। फर्श से जाल का ऊपरी भाग 152 से.मी  की ऊंचाई पर स्थिति होना चाहिए  जबकि पोस्ट 155 से.मी  ऊंचाई पर होना चाहिए। जाल के अंतिम भाग तथा पोस्ट के बीच में किसी भी प्रकार का कोई रिक्त स्थान नहीं होना चाहिए। यदि आवश्यकता हो तो जाल की सम्पूर्ण गहराई को अंतिम भाग में बांटा जा सकता है। 

 

पोस्ट :-

           जाल को सीधा रखने के लिए मैदान में दो पोल गाड़ना होता है। इसे पोस्ट कहते हैं। इस पोस्ट की ऊंचाई मैदान से कम से कम 159 से.मी.  होती है।  नेट का कढ़ा रखने के लिए वह भली प्रकार से स्थिर रहना चाहिए।   यह साइड बाउंडरी रेखा के छेत्र में स्थित होता है। 

       

खेल की अवधि :-

                        प्रायः खेल निरंतर चलता रहता है परन्तु कुछ देशो में इसके मध्य अधिकतम पांच मिनट का अंतराल प्रदान किया जाता है। 


उचित सर्विस :-

                 पहले कौन सा खिलाड़ी शटल को सर्व करेगा इसका निर्णय करने के लिए रैकिट को स्पिन देकर रफ अथवा स्मूथ बोला जाता है और जो खिलाड़ी सही बोलता है , उसी को साइड चुनने का अधिकार सबसे पहले दिया जाता है। सर्विस को उसी समय दिया जाना चाहिए जब उसे प्राप्त करने वाला खिलाड़ी तैयार हो। 


साइड का चुनाव:-

                           यदि खिलाड़ी के अंक सम हो तो वह दाहिने तरफ के कोर्ट से सर्विस करेगा और उसके अंक विषम हो तो वह आपने बाएं कोर्ट से सर्व करेगा।  
युगल प्रतियोगिताओं में सर्व करने की विधि जटिल होती है।  इसके अंतर्गत यदि सर्विस करने वाला खिलाड़ी पहले अंक अर्जित करता है तो वह अपने बाएं कोर्ट से विपक्षी टीम के बाएं कोर्ट में शटल फेकेगा और वह खिलाड़ी जिसने पहले सर्विस नहीं ली थी अब वह सेर्वेस को प्राप्त करने वाला बन जायगा। 

त्रुटियाँ :-

             यदि कोई  खिलाड़ी नियमों का उलंघन करके खेलता है तो उसे प्रतियोगिता से बाहर भी किया जा सकता है। 
यदि शटल को सर्व करते समय खिलड़ी का हाथ कंधे से ऊपर हो तो इसे गलत माना जाता है। यदि शटल को सर्व करते समय सर्वर का पैर सर्विस कोर्ट में न हो तो इसे भी गलत माना जाता है। यदि शटल को उस समय पर हिट किया जाय जब वह विपक्षी के पाले में हो। यदि शटल खेल में हो तो खिलाड़ी जाले को या उससे सम्बंधित किसी भी उपकरण को छूने का प्रयास करे। यदि सर्व करते समय सर्वर का पैर जमीन से उठ जाय। 

                  

 लैट :-

         लैट उस स्थिति में प्रदान किया जाता है जब सर्विस के दौरान शटल नेट को स्पर्श करती हुई उसे पार करती है। ऐसी स्थिति में रैली तथा उससे प्राप्त होने वाले अंक को गिना नहीं जाता।  ऐसे समय में खिलाड़ी को पुनः शटल को सर्व करने का अवसर प्रदान किया जाता है। लैट के लिए खिलाडियों को किसी भी प्रकार की अपील नहीं करनी पड़ती। यदि सर्विस करने वाला गलत कोर्ट में खड़े होकर सर्व करता है , उस स्थिति में भी एकल प्रतियोगिताओं में लैट प्रदान किया जाता है। युगल खेलों में भी लैट के नियम यही रहते हैं। 


वेशभूषा :-

              बैडमिंटन खिलाडियों के वस्त्रों में मुख्यतः जर्सी ,जुराबें तथा रबर सोल के जूते सम्मिलित होते हैं। महिलाओं के लिए प्रयोग की जाने वाली वेशभूषा में स्कर्ट ,जुराबें ,जर्सी तथा जूतों को सम्मिलित किया जाता है। 


साइड परिवर्तित करना :-

                                             प्रत्येक गेम के पश्चात् खिलाडियों के लिए साइड परिवर्तित करना आवश्यक होता है। पाले उस स्थिति में भी बदले जाते हैं जब 15 अंकों के खेल में खिलाड़ी 12 अंक बना लेता  है, 11 अंकों के खेल में 6 अंक बना लेता है और 21 अंकों के खेल में 11 अंक बना लेता है। 


स्कोरिंग :-

               केवल वही टीम व साइड अंक प्राप्त कर सकती है जो शटल को सर्व कर रही हो।  पुरषों का 21 तथा 15 अंकों का होता है जबकि महिलाओं का एक खेल 11 अंकों का होता है।  मैच का निर्णय लेने के लिए कम से कम तीन गेमें अवश्य खेली जाती हैं। 


                         प्रयोग किये जाने वाले उपकरण :-

                                                   

रैकिट :-

           यह लकड़ी या स्टील से निर्मित होती है। प्रायः इसका भार 4  से 5 औंस होता है।  

शटल :-

           एक शटल में कुल 14 या 15 पंख होते हैं। शटल का भार 4. 75 से 5. 50 ग्राम से अधिक नहीं होता है। 

बैडमिंटन में अधिकारी :-

                   अंक गणना का जिम्मेदार केवल अम्पायर ही होता है। वह चाहे
तो सर्विस जज और लाइनमैन रख सकता है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर की प्रतिस्पर्धाओं में इन्हीं तीनों को नियुक्त किया जाता है।  

अम्पायर :-

               अम्पायर का निर्णय अंतिम तथा सर्वमान्य होता है ,अथार्त कोई भी खिलाड़ी उसका विरोध नहीं कर सकता। खेल के मैदान व कोर्ट भली प्रकार से तैयार है या नहीं, इसे सुनिश्चित करने का काम अम्पायर का होता है। अन्य अधिकारीगण ,अथार्त सर्विस जज तथा लाइनमैन भली प्रकार से अपने कार्यों को जानते हैं और सही स्थान पर स्थानांतरित करते हैं, इसे देखना भी

अम्पायर का काम होता है। सभी आवश्यक सामग्री खिलाड़ियों को प्राप्त की जा चुकी है , इसका ध्यान भी अम्पायर ही रखता है।  
जैसा की ज्ञात है कि खेल को आरम्भ करने से पूर्व सिक्का उछाला जाता है, अम्पायर को यह सुनिश्चित करना होता है कि यह कार्य सही प्रकार से की गई है और कोई भी खिलाड़ी इस क्रिया में जानबूझ कर लाभ प्राप्त तो नहीं कर रहा है। खिलाड़ीयों द्वारा अर्जित अंकों का पूरा ब्यौरा वह रिकॉर्ड करेगा। खेल की अवधि में होने वाले अंतराल को वह तेजी से कहेगा ताकि खिलाड़ी तथा दर्शकों को इस बात का पता चल जाय।  
पुरूषों के खेल मे यदि कोई खिलाड़ी 14 अंक या महिलाओं के खेल में यदि कोई खिलाड़ी 10 अंक प्राप्त कर लेता है तो तेजी से खेल अंक या गेम पॉइंट कहने का काम भी अम्पायर का होता है। अम्पायर का एक महत्वपूर्ण कार्य खिल को बिना रुके संपन्न करने का भी है। उसे यह देखना होता है की कोई भी खिलाड़ी जानबूझ कर खेल को रोक कर न रखे और इस प्रकार किसी भी प्रकार का कोई लाभ उसे प्राप्त न हो। यदि कोई खिलाड़ी खेलते वक्त जख्मी हो गया है तो वह खेल को रोक सकता है और उपचार का लिए व्यवस्था करता है। यदि कोई खिलाड़ी को कोई प्रश्न करना है तो वह उनका उत्तेर देने के लिए जिम्मेदार होता है और उन्हें सही उत्तेर देना का कर्तव्य होता है। 
इस प्रकार दर्शकों तथा खिलाड़ीयों को खेल की स्थिति के बारे में समय -समय से अवगत कराना अम्पायर का कार्य होता है। अम्पायर को अधिकारिओं में सबसे महत्वपूर्ण समझा जाता है और उसका स्थान सबसे महत्वपूर्ण होता है। 


सर्विस जज :-

                   सर्विस जज सदैव एक छोटी कुर्सी पर बैठा होता है। उसकी कुर्सी नेट के पास होती है परन्तु वह अम्पायर के सामने होता है। सर्विस करने वाले खिलाड़ी ने सही प्रकार से सर्विस की या नहीं, इसे देखने का मुख्य
कार्य सर्विस जज का होता है।  उसे यह देखना होता है की सर्वर तब तक सर्विस न करे जब तक विरोधी खिलाड़ी सर्विस लेने के लिए तैयार न हो जाय,हालाकि यदि विरोधी खिलाड़ी शटल को हिट कर दे तो वह सर्विस के लिए तैयार माना जाता है।  उसे यह देखना होता है कि सर्वर किसी भी प्रकार से अनुचित न करे और यदि करे तो उसे भली प्रकार से आगाह करने का कार्य सर्विस जज का होता है।   यदि उसे लगे सर्वर ने सही प्रकार से सर्विस नहीं की है तो उसे तेजी से फाउल कहना होता है जिससे अधिकारीगण तथा खिलाड़ी दोनों को यह पता चलता है कि उसने सर्विस सही प्रकार से नहीं की है।  

1. सर्विस करते समय यदि खिलाड़ी शटल के आधार पर रैकिट नहीं लगता
तो वह एक त्रुटि है जो इस संकेत द्वारा दर्शाई जाती है -


 2. यदि सर्व करते समय शटल सर्वर के कमर से ऊँची हो तो इसे एक त्रुटि माना जाता है जिसे निम्न संकेत द्वारा दर्शाया जाता है -


3. यदि सर्वर अपने पैर सर्विस कोर्ट से सर्विस पूरा हो जाने से पहले ही हटा
देता है तो वह एक त्रुटि होती है जो निम्न संकेत द्वारा दर्शाई जाती है -


लाइनमैन :-

                यह अधिकारी पूर्ण रूप से कोर्ट पर खिंचे हुए लाइनों के लिए उत्तरदायी होते हैं। यदि खेल का दौरान शटल लाइन के बाहर चली जाय तो लाइनमैन का यह कर्तव्य होता है कि वह तीव्र से आउट बोलेगा, जिससे अधिकारी तथा खिलाड़ी दोनों इस बात से अवगत हो जाएं। यदि आवश्यकता हो तो एक से अधिक लाइनमैन को नियुक्त किया जा सकता है। 


यदि शटल लाइन के बाहर चली जाती है तो लाइनमैन द्वारा निम्न संकेत प्रयोग किये जाते हैं -

    यदि वह सही प्रकार से न देख पा रहा हो ,अर्थात यदि उसके देखने में कोई बाधा आ रही हो तो वह निम्न संकत प्रयोग करता है -